Property Rights Update: अब संपत्ति में बेटा-बेटी एक बराबर, 2 लाइन में बदली किस्मत

Published On: August 7, 2025
Property Rights Update

भारतीय समाज में जायदाद और संपत्ति के अधिकार को लेकर लम्बे समय से कई तरह की परंपराएँ और सोच रही हैं। बहुत लंबे समय तक बेटियों को विरासत में उतना अधिकार नहीं मिलता था जितना बेटों को मिलता था।

परिवारों में अक्सर देखा जाता था कि पिता की संपत्ति पर बेटों का कब्जा समझा जाता था, जबकि बेटियों को या तो कुछ नहीं मिलता था या बहुत सीमित हिस्सा मिलता था।

लेकिन समय के साथ महिलाओं के अधिकारों को लेकर समाज में जागरूकता बढ़ी है। कानून भी अब महिलाओं, खासकर बेटियों को बराबरी का अधिकार देने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

आज हम एक ऐतिहासिक कोर्ट के फैसले और उससे जुड़े कानून की चर्चा करेंगे, जिसने बेटे-बेटी के बीच संपत्ति पर अधिकार में बराबरी की नींव रखी है। यह बदलाव बेटियों के भविष्य और समाज की सोच दोनों पर गहरा असर डालता है।

Property Rights Update

सन 2005 में भारत सरकार ने ‘हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005’ लागू किया, जिससे बेटों और बेटियों दोनों को पिता की संपत्ति में समान अधिकार दिये गए। इस अधिनियम के तहत, हिंदू परिवार में जन्मी बेटी को अब बेटे की तरह पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा।

चाहे बेटी विवाहित हो या अविवाहित, उसे पैतृक जायदाद में भागीदारी का अधिकार मिलता है। मूल रूप से पहले बेटियों को पिता की संपत्ति में समान हिस्सेदारी नहीं मिलती थी। बेटा एकमात्र मुख्य वारिस होता था। इस संशोधन से बेटियों को यह अधिकार मिल गया कि वह अपने पिता की चल-अचल संपत्ति और जमीन पर बराबरी से दावा कर सकती है।

यह अधिकार बिना किसी शर्त के है, चाहे बेटी शादीशुदा हो, पढ़ी-लिखी हो या कहीं भी रहती हो। यदि पिता की मौत 09 सितंबर 2005 के बाद हुई है, तो जायदाद बँटवारे में बेटियों को भी बेटों के बराबर हिस्सा मिलेगा।

इस कानून का दायरा सिर्फ हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के लोगों तक सीमित है, क्योंकि इन पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होता है। मुस्लिम, ईसाई या अन्य धर्म के लोगों पर यह लागू नहीं होता।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में अपने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया कि बेटियों का यह बराबरी का हक जन्म से ही है, न कि पिता की मौत के बाद से। यानी बेटी को पैदाइशी तौर पर सम्पत्ति में दावा करने का अधिकार है।

सरकार एवं अदालत की भूमिका

सरकार ने इस संशोधन के जरिये बेटियों को क्षेत्रीय कुरीतियों और भेदभाव से बाहर निकालने की पहल की थी। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों में आए कई केसों में बेटियों के पक्ष में फैसले दिये गए, जिससे समाज में बदलाव की लहर आई।

अब अगर परिवार पुत्री को संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार करता है, तो वह कानूनन दावा कर सकती है और अदालत उसकी सुरक्षा करती है। कई बार बेटियों को डर या दबाव में हिस्सा छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।

लेकिन सरकार और अदालत ने साफ किया है कि जब तक कोई बेटी अदालत में लिखित तौर पर या पूरे कानूनी तरीके से हक छोड़ने का दस्तावेज़ नहीं देती, तब तक उससे उसका अधिकार नहीं छीना जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा है कि समझौता या दबाव में किया गया त्याग अदालत में निर्वाह नहीं करेगा।

बेटियों के अधिकार प्राप्ति के लिए प्रक्रिया

यदि बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल रहा, तो वह निम्नलिखित प्रक्रिया अपना सकती है:

  • सबसे पहले परिवार या संबंधित सदस्यों से हल निकाले।
  • अगर हल न निकले तो संबंधित क्षेत्र के राजस्व विभाग या अदालत में वाद दायर करें।
  • सभी जरूरी दस्तावेज, जैसे मृत्यु प्रमाण पत्र, संपत्ति से जुड़े कागज और पैदाइशी प्रमाण पत्र साथ रखें।
  • अदालत का फैसला अंतिम होगा और उसमें दोनों पक्षों को सुनने के बाद बेटियों को उनका हक दिलवाया जाएगा।

प्रावधान और सीमाएँ

यह कानून हिंदू परिवार की उन संपत्तियों पर लागू होता है, जिन्हें पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार के रूप में पाया गया हो। जो निजी या अर्जित संपत्ति होती है, उस पर पिता अपनी मर्जी से वसीयत बना सकते हैं।

अगर पिता ने वसीयत (will) नहीं बनाई है, तो संपत्ति का बँटवारा इस कानून के अनुसार ही होगा; जिसमें बेटे और बेटी को समान हक मिलेगा।

ध्यान देने की बात है कि अगर कोई बेटी पिता की संपत्ति से सम्बंधित अधिकारों को त्याग देती है, तो उसे इस फैसले या कानून का लाभ नहीं मिलेगा। पर, अगर बेटे को अधिकार है, तो बेटी भी हकदार है।

निष्कर्ष

बेटा-बेटी को संपत्ति में बराबरी का अधिकार मिलना समाज में एक बड़े बदलाव का संकेत है। यह फैसला न केवल महिला सशक्तिकरण को बढ़ाता है, बल्कि परिवारों में न्याय और सहमति की भावना भी मजबूत करता है। हर बेटी और हर परिवार को कानून का यह अधिकार समझना और अपनाना चाहिए, ताकि कोई भी पुत्री अपने हक से वंचित न रह सके।

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